हाजी अली की दरगाह (Haji Ali Dargah) मुंबई में स्थित एक दरगाह व मस्जिद है। सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी (Sayyed Peer Haji Ali Shah Bukhari) की याद में बनाई गई यह दरगाह हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लिए आस्था का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। यह दरगाह वारली तट से थोड़ी दूर एक छोटे से टापू पर लगभग 4500 मीटर के क्षेत्रफल में बनी है। इस दरगाह के समीप एक मीनार है जिसकी ऊंचाई 85 फीट है। मस्जिद के भीतर हाजी अली की कब्र है जो हर समय लाल या हरे रंग के चादर से ढकी हुई रहती है। दरगाह तक पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर बना पुल एकमात्र रास्ता है, जो समुद्री ज्वार के समय पानी में डूब जाता है।
हाजी अली की दरगाह सन् 1431 में एक अमीर मुस्लिम व्यापारी, सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में बनाया गया था। जिन्होंने मक्का की यात्रा करने से पहले अपनी सारी संपत्ति त्याग दी थी। कहा जाता है कि हाजी अली ने अपनी मृत्यु से पहले अपने अनुयायियों से कहा था कि उनके शव को किसी भी जगह ना दफनाएं बल्कि उनके शव को ताबूत में डालकर समुद्र में बहा दें और जिस जगह जाकर वह ताबूत रूके वहीं दरगाह बना दें। उनके अनुयायियों ने उनकी बात मानी और मृत्यु के बाद उनके शव को एक ताबूत में बंद करके समुद्र में बहा दिया। वह ताबूत समुद्र में बने चट्टानों के छोटे से टीले पर जाकर रुक गया। आज इसी स्थान पर हाजी अली की दरगाह बनी है।
साल 1949 और 2005 को मुंबई में आई प्राकृतिक आपदाओं के कारण शहर की कई इमारतों को क्षति पहुंची थी लेकिन हाजी अली दरगाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था दरगाह में गुरुवार और शुक्रवार के दिन श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ होती है समुद्र में ज्वार के समय यहां का रास्ता पानी में डूब जाता है। इस दौरान यहां की यात्रा करना संभव नहीं हो पाता है।