राजस्थान का जयपुर शहर अपने शानदार किलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के मशहूर किलों में से एक है नाहरगढ़ का किला। सुदर्शनगढ़ नामक इस किले का नाम बदलकर नाहरगढ़ रख दिया गया जिसका अर्थ होता है "शेरों का घर"।
विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंख्लाओं में से एक अरावली की पहाड़ियों पर यह किला स्थित है। इस किले की दीवारें जयगढ़ किले से मिलती हुई हैं जिसे राजस्थान राज्य का विजयी किला भी कहा जाता है। भारत यूरोपीय वास्तुकला में निर्मित इस किले के अंदर कई इमारतें, मंदिर, माधवेंद्र भवन, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास मौजूद हैं।
सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाए गए इस किले के माधवेंद्र भवन में राजा और उसकी रानियों के लिए 12विशाल कमरे मौजूद हैं। इस भवन का इस्तेमाल राजा और उनके परिवारजनों द्वारा गर्मियों के दौरान किया जाता था। जयपुर शहर को उत्तरी दिशा से घेरते हुए इस किले को जयपुर का पहरेदार किला भी कहा जाता है।
महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा सन् 1734 में इस किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था। महाराजा ने इस किले को अपने आश्रय के लिए बनवाया था। 1868 में राजा सवाई राम सिंह द्वितीय ने इस किले में पुनर्निमाण का कार्य करवाया था। वर्तमान समय में राजा सवाई सिंह द्वारा बनवाई कई इमारतें जर्जर हालत में हैं हालाँकि राजा सवाई राम सिंह द्वितीय और सवाई माधो सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित भवन आज भी सुरक्षित हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब नाहरगढ़ किले का निर्माण चल रहा था तब राठौड़ के राजकुमार, नाहर सिंह बोमिया की आत्मा इस किले के निर्माण कार्य में रूकावट डाल रही थी। कहते हैं कि इस किले के परिसर में नाहर सिंह को समर्पित एक मंदिर बनवाया गया जिसके बाद इस किले का कार्य पूरा हो पाया।
यह किला पर्यटकों के लिए सुबह 10 से शाम 6 बजे तक खुला रहता है।
यहां पर भारतीय पर्यटकों के लिए 20 रूपये व विदेशी पर्यटकों के लिए 50 रूपये की एंट्री फीस है।
इस किले के पास खाने पीने के भी अच्छे इंतजाम हैं।