हरिद्वार से लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर कनखल में दक्ष महादेव मंदिर (Daksh Mahadev Temple) स्थित है। कनखल, राजा दक्ष प्रजापति की राजधानी हुआ करती थी। दक्ष महादेव मंदिर का निर्माण सन् 1810 में रानी धनकौर द्वारा करवाया गया था, फिर सन् 1962 में मंदिर का पुर्ननिर्माण कार्य हुआ।
दक्ष महादेव मंदिर के आंगन में भगवान शिव के हाथों में माता सती का मृत देह उठाए एक विशाल मूर्ति है। उसके समीप ही भगवान शिव के वाहन नन्दी विराजमान हैं। मंदिर की दीवारों पर राजा दक्ष के यज्ञ कुण्ड और माँ सती के बलिदान की कहानी चित्रित की गई है।
सावन के महीने, शिवरात्रि और नवरात्रि में यहाँ की यात्रा को विशेष महत्व दिया जता है इसीलिए इन उत्सवों के दौरान यहाँ भक्तों का जमावड़ा लग जाता है।
दक्ष महादेव मंदिर से ही माँ सती के यज्ञ कुण्ड में भस्म होने की कहानी शुरू होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती के पिता राजा दक्ष द्वारा विशाल यज्ञ के आयोजन पर सभी देवी-देवताओं को न्यौता दिया गया लेकिन उनके पति भगवान शिव को नहीं। अपने पति का अपमान देख माँ सती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने दक्ष के यज्ञ कुण्ड में अपने प्राणों की आहूति दे दी।
अपनी माता की ये दशा देख शिवगणों ने दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया, जो उसी यज्ञकुण्ड में जलकर भस्म हो गया लेकिन देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने दक्ष के धड़ पर बकरे का शीश लगा उसे दोबारा जीवित कर दिया। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर इसी प्राचीन कहानी का सत्य बयां करता है।
मंदिर में दो कुण्ड है एक सती कुण्ड और दक्ष कुण्ड। माना जाता है कि सती कुण्ड में ही माता सती ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। यह कुण्ड प्राचीन समय से यहाँ मौजूद है।
महाशिवरात्रि और सावन के महीने पर यहाँ शिव भक्तों का तांता लगा होता है
मुख्य मंदिर के साथ ही अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं।
शाम 6 से 7 के बीच की आरती में भाग ले सकते हैं