नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। गुजरात में स्थित (Nageshwar Jyotirlinga) द्वारका और बेत द्वारका के रास्ते में पड़ता है। यह मुख्य शहर से लगभग 17 किमी. की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव अपने भक्तों की सांपों से रक्षा करते हैं। नागेश्वर मंदिर में मुख्य शिवलिंग गर्भ गृह की सतह से नीचे है। शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिनों में यहां भक्तों की भारी भी आती है।
भगवान शिव के प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा स्कन्द पुराण समेत कई अन्य पुराण और ग्रंथों में भी मिलती है। एक कथा के अनुसार प्राचीन समय में इस स्थान को "दारुकावन" कहते थे। इस इलाके में दारुका नामक राक्षसी का आतंक था। सुप्रिय नामक शिवभक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राक्षसी का अंत किया और यहां शिवलिंग के रूप में विराजमान हुए। तभी से इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा होती है। कई लोग मानते हैं कि मूल नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में है लेकिन भगवान शिव की पूजा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में इसी स्थान पर होती है। वर्ष 1996 में स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार ने इस मंदिर का पुनर्निमाण शुरु कराया था।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग अन्य शिवलिंगों की तरह काले पत्थर का नहीं बल्कि "द्वारका शिला" नामक पत्थर से बना है जिसपर छोटे-छोटे चक्र हैं। यहां भगवान शिव की 25 मीटर लंबी पद्मासन धारण किए मूर्ति स्थापित है जो बहुत दूर से ही दिखाई दे जाती है। साथ ही यहां एक बड़ा बगीचा है जिसमें सुंदर तालाब है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सुबह पांच बजे से लेकर रात नौ बजे तक खुलता है
मंदिर में पूजा-अभिषेक की विशेष सुविधा उपलब्ध है जिसके लिए पहले रसी लेनी पड़ती है
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के आसपास रहने की सुविधा नहीं है इसलिए यहां आने से पहले द्वारका या ओखा में होटल, लॉज या धर्मशाला बुक कर लेना चाहिए
यात्रा से पहले अपने साथ जरूरी पहचान पत्र अवश्य साथ रखें