भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका धाम का सबसे प्रमुख मंदिर द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple) है। कहा जाता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर है जहां कभी विष्णु जी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण रहा करते थे। द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर चारों तरफ से चारदीवारी से घिरा हुआ जिसके दो मुख्य द्वार हैं। इसके उत्तर में "मोक्ष द्वार" है और दक्षिण में "स्वर्ग द्वार" है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है, यहीं पर गोमती स्नान कर भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर के अंदर भगवान कृष्ण की चांदी के सिंहासन पर श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के शिखर पर एक ध्वज है जिस पर सूर्य और चंद्रमा बने हुए हैं। इस ध्वज को दस किमी. की दूरी से भी देखा जा सकता है।
द्वारकाधीश मंदिर के इतिहास के विषय में सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। एक मत के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कृष्ण जी के वंशज वज्रनभ ने 2500 साल पहले कराया था। द्वारकाधीश मंदिर के आसपास के स्थानों का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ। द्वारकाधीश मंदिर के पास ही पूर्व दिशा में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित "द्वारका पीठ" भी है। यह भारत की चारों दिशाओं में स्थित विभिन्न पीठों में से एक है।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण जी की मृत्यु के बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी लेकिन द्वारकाधीश मंदिर नहीं डूबा था।
द्वारकाधीश मंदिर सुबह 06:30 बजे से लेकर रात 09:30 बजे तक खुला रहता है
दिन के समय 12:30 से लेकर 05:00 तक बंद रहता है
यहां दिन में चार बार आरती होती है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मंगल आरती सुबह 06:30 बजे होती है
द्वारकाधीश मंदिर परिसर के अंदर शोर नहीं मचाना चाहिए
यात्रा के दौरान अपने साथ सभी जरुरी दस्तावेज रखें