नैनी झील के किनारे बना “नैना देवी मंदिर” (Naina Devi Temple) 51 शक्तिपीठों में से है। यहाँ प्रयुक्त नैना शब्द से तात्पर्य, माता सती की आँखों से है। इस मंदिर में माता सती की आँखों को पूजा जाता है।
मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण है जो काफी वर्ष पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान की मूर्तियाँ है। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही माता के वाहन दो शेरों की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। मंदिर के गर्भ ग्रह में तीन मूर्तियाँ हैं- दाई तरफ माँ काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की।
पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा की जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़नखटोले (Ropeway) का प्रबंध किया गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति भगवान शिव के अपमान से नाराज़ होकर माता सती ने आत्मदाह कर लिया था, जिसके पश्चात् संसार को भगवान शिव के विकराल रूप से बचाने के लिए श्री हरि को अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के 51 हिस्से करने पड़े और जहाँ-जहाँ देवी के अंग गिरे, वो स्थल शक्तिपीठ कहलाया।
नैनीताल के नैना देवी मंदिर में माता सती की आँखे गिरी थी। इसीलिए इस मंदिर का काफी महत्व है।
नैना देवी के नाम पर ही शहर का नाम नैनीताल रखा गया।