शानदार गॉथिक संरचना में बना सेंट स्टीफंस चर्च (St. Stephens Church) आज भी विक्टोरियन युग की झलक दर्शाता है। पूरी तरह से लकड़ी से बने इस चर्च की वास्तुकला व नक्काशी देखने लायक है। लकड़ी से बने होने के कारण इस गिरजाघर के अंदर का तापमान हमेशा ठंडा रहता है।
नीलगिरी की पहाड़ियों में स्थित सेंट स्टीफंस चर्च ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान बनने वाले चर्चों में से एक और साथ ही दक्षिण भारत के पुराने चर्चों में आता है। लास्ट सपर ( Last Supper) के चित्र, शीशों पर छपी हुई ईसा-मसीह व मरयम की अनेक तस्वीरें, इस गिरजाघर के मुख्य आकर्षण हैं। 19वीं सदी का यह चर्च आज भी बेहतर हालत में हैं, ऊटी यात्रा में इस स्थल को भी जरूर शामिल करें।
सेंट स्टीफंस चर्च का निर्माण सन् 1829 में स्टीफन रमबल्ड लशिंगटन द्वारा करवाया गया था। स्टीफन मद्रास के गवर्नर थे, उन्हीं के नाम पर इस चर्च का नाम रखा गया। ऊटी में ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए कोई प्रार्थना स्थल नहीं था इसलिए स्टीफन ने इस चर्च का निर्माण कराया। कप्तान जॉन जेम्स अंडरवुड इस गिरजाघर के मुख्य वास्तुकार थे।
ऐसा कहा जाता है कि इस गिरजाघर के निर्माण कार्य में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी सन् 1829 में टीपू सुल्तान के महल से मंगवाई गई थी। ब्रिटिशों द्वारा टीपू सुल्तान की पराजय के बाद श्रीरंगपटना द्वीप पर स्थित टीपू सुल्तान के महल से हाथियों द्वारा लकड़ियाँ आईं थी।
रविवार के दिन खुलने और बंद होने का समय अलग है
सुबह के दस से दोपहर के एक बजे तक और दोपहर के तीन से शाम के पांच बजे तक चर्च खुला रहता है