सर्द खूबसूरत वादियों का शहर है "दार्जिलिंग"। खड़े, घुमावदार पर्वतों पर लगे देवदार, बांस और ताड़ के पेड़ों के बीच से होते हुए "टॉय ट्रेन" द्वारा दार्जिलिंग का सफर रोमांच से भर देता है। नीले आसमान के तले "माउंट कंचनजंगा" की बर्फ से ढकी पहाड़ियों के मनोरम दृश्य वाला दार्जिलिंग शहर, यक़ीनन एक खूबसूरत स्थान है। बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि दार्जिलिंग का नाम पहले "दोर्जेलिंग" था जिसका अर्थ होता है "तूफानों की धरती"। दार्जिलिंग में अधिक तूफानों के आने के कारण ही इस शहर का यह नाम पड़ा। पहाड़ियों की ढलान पर बने चाय के बागान, ऑर्किड, पाइंस और रोडोडेनड्रॉन्स के पौधे, पर्वतों के बीच से गुज़रती हुई टॉय ट्रेन और हरी-भरी वादियों के बीच बने रंग-बिरंगें छोटे-छोटे मकान, दार्जिलिंग के ऐसे अनोखे मंज़र आपकी आँखों में हमेशा के लिए बस जाएंगे। दार्जिलिंग में आपको प्रकृति की सुंदरता के ऐसे दुर्लभ दृश्य देखने को मिलेंगें कि आप दंग रह जाएंगे।
दार्जिलिंग से पर्यटक तिब्बती मास्क, थंगका पेंटिग, तिब्बती आभूषण, स्थानीय बूट्स, खुखरी (गोरखा छुरी), पश्मीना शॉल्स, स्कार्फस, कैप्स, चमड़े की बनी वस्तुएं आदि खरीद सकते हैं। दार्जिलिंग शहर के मुख्य बाजार चौरस्ता, चौक बाजार, भूतिया मार्केट और द माल हैं।
दार्जिलिंग जा रहे हैं तो वहां की मशहूर दर्ज चाय पीना ना भूलें।
ट्रैकिंग के दीवानों के लिए यह जगह जन्नत से कम नहीं
मानसून के दौरान दार्जिलिंग जा रहे हैं तो अपने साथ रेन कोट, छाता, रबर बूट्स जरूर रखें।
शहर घूमने के लिए टैक्सी या पोनी का उपयोग कर सकते हैं।
भारत देश की आज़ादी से पहले काफी समय तक यह क्षेत्र सिक्किम राज्य का हिस्सा हुआ करता था, फिर इस शहर पर नेपाली राजाओं का शासन हुआ। नेपाली जनजाति गोरखा द्वारा सिक्किम के राजा से दार्जिलिंग का क्षेत्र एक युद्ध में छीना गया था। सन् 1815 की सुगौली संधि के अंतर्गत नेपाल को दार्जिलिंग शहर, ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंपना पड़ा। साल 1817 की टिटालिया संधि होने पर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दार्जिलिंग का क्षेत्र सिक्किम राज्य के सुपुर्द कर दिया लेकिन सन् 1835 में दोबारा ब्रिटिशर्स ने दार्जिलिंग को अपने लिए सैरगाह स्थल के तौर पर अपने अधीन कर लिया। भारत की आजादी के बाद इस शहर को पश्चिम बंगाल में विलीन कर दिया गया।
राज्य- पश्चिम बंगाल
स्थानीय भाषाएँ- हिंदी, गोरखा, बंगाली, नेपाली, तिब्बती, अंग्रेजी
स्थानीय परिवहन- कार, बस
पहनावा- दार्जिलिंग में गोरखा पुरूष भोतो, दौरा सुरूवाल और ढाका टोपी पहनते हैं। गोरखा जाति की औरतें साड़ी और चोलो पहनती हैं। वहीं लेपचा जाति के पुरूष दुमप्रा और महिलाएं घुटने की लंबाई तक का डुमडेम पहनती हैं। यहां तिब्बती महिलाएं लॉंग स्लीव ब्लाउज के साथ गहरे रंगों की लंबी ड्रेस पहनती हैं जिसे बक्कू और चुबा कहा जाता है।
खान-पान- मोमोज़, थुपका, आलूदम, तिब्बती चाय, तोंगबा, शेल रोटी, छांग, तिब्बती नूडल आदि दार्जिलिंग के प्रसिद्ध स्थानीय व्यंजन हैं। यदि आप दार्जिलिंग की यात्रा कर रहे हैं तो इनका स्वाद चखना ना भूलें। यहां मिलने वाली तिब्बती चाय का स्वाद नमकीन होता है।
तिब्बती न्यू ईयर - Tibetan New Year
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में तिब्बती नया साल जिसे लोसर भी कहते हैं, हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। जनवरी महीने के अंत में यह त्यौहार मनाया जाता है और फरवरी महीने के पहले पूरे हफ्ते तक इस त्यौहार की रौनक देखी जा सकती है।
ऑरेंज फेस्टिवल - Orange Festival
दार्जिलिंग शहर का ऑरेंज फेस्टिवल कई सैलानियों को आकर्षित करता है जहाँ आपको संतरे की ही कई किस्मे चखने और खरीदने को मिल जाएंगी। ये उत्सव प्रत्येक वर्ष दिसंबर माह में मनाया जाता है।
हवाई मार्ग - By Flight
पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में स्थित बागडोरा हवाई-अड्डा दार्जिलिंग से नज़दीकी हवाई-अड्डा है।
रेल मार्ग - By Train
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे द्वारा नैरो गेज पर दार्जिलिंग रेलवे चलाई जाती है। यह ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है, इसे टॉय ट्रेन भी कहा जाता है।
सड़क मार्ग - By Road
पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी से दार्जिलिंग तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। सिलिगुड़ी से दार्जिलिंग तक के लिए आप बस, प्राइवेट या शेयर्ड कार भी कर सकते हैं।
दार्जिलिंग की यात्रा के लिए उपयुक्त समय मार्च से मध्य जून और अक्टूबर से दिसंबर तक है।