प्रकृति की गोद में बसा है चार धामों में से एक श्री बद्रीनाथपुरी (Shri Badrinathpuri), बर्फीले पहाड़, मंदिर का शांत और सकारात्मक वातावरण और अपार श्रद्धा में डूबी भक्तों की भीड़, इस स्थान की महत्ता का वर्णन करती है।
मंदिर में भगवान बद्रीनारायण (Badrinarayan) की एक मीटर लम्बी काले रंग की मूर्ती (जिसे शालिग्राम (Shaligram) भी कहा जाता है) को पूजा जाता है, माना जाता है कि वह प्रतिमा स्वयं अवतरित हुई थी। भगवान के एक हाथ में शंख और दूसरे में चक्र है एवं दो हाथ योगमुद्रा में हैं। भगवान बद्रीनारायण की मूर्ती के निकट नारद, कुबेर, उद्धव जी और नारायण की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं- गर्भ गृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप।
मंदिर के इतिहास से संबंधित कोई प्राचीन लिखित प्रमाण तो नहीं मिलता है लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार,यह मंदिर आदि शंकराचार्य जी द्वारा निर्मित माना जाता है जिन्हें अलकनंदा नदी के किनारे भगवान विष्णु की यह प्रतिमा मिली थी जिसे उन्होंने तप्तकुंड के नजदीक एक गुफा में स्थापित कर दिया था।
एक अन्य मान्यता यह भी है कि शंकराचार्य द्वारा यहाँ मंदिर बनाने से पहले यह एक बौद्ध मंदिर था जिसे एक हिन्दू मंदिर में बदल दिया गया था। मंदिर के चमकदार रंग और वास्तुकला को बौद्ध मंदिर से मिलता-जुलता माना जाता है।
मंदिर के पुजारी जिन्हें “रावल जी” भी कहा जाता है, संस्कृत में मंत्रों और पाठ का उच्चारण करते हैं तथा इनका ब्रह्मचारी होना और केरल के ब्राह्मण परिवार से होना अत्यंत आवश्यक होता है। मंदिर में एक अखंड ज्योति भी है जो काफी समय से निरंतर जलती आ रही है।
प्लास्टिक का प्रयोग न करें, यात्रा में यह वर्जित है।
गर्म कपड़े और दवाइयां साथ में जरूर रखें।
सूर्य उदय से पहले ही भगवान बद्री नारायण की पहली आरती की जाती है, दोपहर 1 से 4 बजे तक दर्शन नहीं किये जाते और शाम 8:30-9 बजे तक शाम की आरती के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है।