ग्वालियर किले के अंचल में गोपाचल पर्वत है, जहां प्राचीन जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है| पर्वत को तराशकर यहां सन 1398 से 1536 के मध्य हजारों विशाल दिगंबर जैन मूर्तियां बनाई गई हैं।
गोपाचल पर्वत का इतिहास - History of Gopachal Parvat in Hindi
तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूंगर सिंह व कीर्ति सिंह के काल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण हुआ था। गोपाचल पर्वत सृष्टि को अहिंसा तथा हिंदू धर्म में आई बलिप्रथा को खत्म करने का सन्देश देता है। यहां स्थित विभिन्न मूर्तियों द्वारा समाज को कई तरह के संदेश देने की कोशिश की गई है। गोपाचल पर्वत का मुख्य आकर्षण भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा है।
किंवदंती है कि डूंगर सिंह ने जिस श्रद्धा एवं भक्ति से जैन मत का पोषण किया था, उसके विपरीत शेरशाह शूरी ने पर्वत की इन मूर्तियों को तोड़कर खंडित किया। उसने एक बार स्वयं पार्श्वनाथ की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार उठाया था, लेकिन उसकी भुजाओं में शक्ति नहीं बची थी। इस चमत्कार से भयभीत होकर वह भाग खड़ा हुआ था।
गोपाचल पर्वत की मान्यता - Importance of Gopachal Parvat
इस पर्वत पर स्थित मूर्तियों द्वारा कर्म, धर्म, मोक्ष, पुनर्जन्म जैसे मुद्दों पर रोशनी डालने का प्रयास किया गया है। यह आध्यात्म और वास्तु कला का एक अनुपम मेल है।