नवकलेवर के बारे में जानकारी - Nabakalebara in Hindi

नवकलेवर के बारे में जानकारी - Nabakalebara in Hindi

पुनर्जन्म का पर्व नवकलेवर - Festival of Reincarnation in Hindi

नवकलेवर, एक काल चक्र है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुदर्शन और देवी सुभद्रा की पुरानी लकड़ी की मूर्तियों को बदलकर उनके स्थान पर नई मूर्तियों को स्थापित किया जाता है और इसी क्रिया को भगवान का पुनर्जन्म माना जाता है। उड़ीसा के पुरी शहर में नवकलेवर उत्सव 12 से 19 साल के अंतराल में रथयात्रा से पूर्व किया जाता है, इस वर्ष भक्तों को सौभाग्य प्राप्त हुआ है भगवान के नए रूप के दर्शन करने का।

नवकलेवर एक पौराणिक प्रक्रिया है जिसे सम्पूर्ण रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है। भगवान की नई मूर्तियाँ नीम के पेड़ से बनाई जाती हैं लेकिन उस पेड़ को चुनने से पहले कई नियमों को पालन किया जाता है, जैसे भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के लिए पेड़ का रंग गहरा होना, चक्र व शंख के चिन्ह होना, चार शाखाएँ जिनमें किसी पक्षी का घोंसला न हो और जड़ों में साँप का बिल आदि स्थितियों का होना अनिवार्य है। इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और अस्त्र सुदर्शन की मूर्तियों के लिए भी पेड़ों का चुनाव, नियमों और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

इस तरह के पेड़ को खोजना आसान बात नहीं है लेकिन इस कार्य में खोज करने वालों की सहायता करती हैं स्वयं देवी मंगला। कहा जाता है कि ऐसे पेड़ जिसे दारू ब्रह्मा कहते हैं, को ढूँढने का कार्य केवल महंतों और पंडितों द्वारा किया जाता है, इनमें से दैयतापति अर्थात मुख्य महंत को सपने में देवी मंगला पेड़ की निश्चित स्थिति की जानकारी देती हैं। पेड़ को ढूंढने से लेकर मूर्तियों के बनने तक के कार्य को गुप्त तरीके से किया जाता है।

एक बार दारू ब्रह्मा का चुनाव होने के पश्चात उनकी पूजा-अर्चना करके रथ में मंदिर तक लाया जाता है और प्रतिमाओं के बनने तक मूर्तिकार कमरा बंद करके दिन-रात अपने कार्य में लगा रहता है, कार्य पूर्ण होने तक किसी का भी कमरे में प्रवेश करना वर्जित होता है। सभी देवी देवताओं की पुरानी मूर्तियों को परम्परानुसार मिट्टी में दबा दिया जाता है।

इस सम्पूर्ण कार्यविधि के बाद समय होता है वार्षिक उत्सव "रथ यात्रा" (Rath Yatra) को मनाने का। प्रत्येक वर्ष जून-जुलाई के महीने में रथ यात्रा आयोजित की जाती है जिसमें दुनियाभर से श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के सुसज्जित भव्य रथों को खींचने और दर्शन करने एकत्रित होते हैं। करीब 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में रथों को जगन्नाथ मंदिर के निकट बने उनकी मौसी के मंदिर में ले जाया जाता है जहाँ वे तीनों 9 दिनों के लिए आराम करने और एक प्रकार से छुट्टियाँ बिताने जाते हैं। इस अवसर पर उन्हें कई स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है और अंतिम दिन में जगन्नाथ मंदिर में प्रतिमाओं की पुनः स्थापना से उत्सव समाप्त होता है।

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