वाराणसी घाट के बारे में जानकारी- Varanasi ghat in Hindi

वाराणसी घाट के बारे में जानकारी- Varanasi ghat in Hindi

वाराणसी, जहाँ कदम रखते ही महसूस होता है जैसे देवताओं ने यहाँ कोई विशेष कृपा बरसाई है इसलिए यदि देवत्व का वास्तविक अनुभव करना हो तो यह सबसे उचित स्थान है। जहाँ की मिट्टी के कण-कण में पवित्रता का आभास हो वहाँ की यात्रा, पर्यटकों और श्रद्धालुओं को मानसिक शांति से भर देती है।

वाराणसी के घाट (Varanasi Ghats), अगर इन्हें सम्पूर्ण वाराणसी नगरी का आईना कहा जाए तो गलत नहीं होगा, जितनी पावन है यह काशी नगरी उतने ही धार्मिक हैं यहाँ के घाट। इन घाटों का नज़ारा मानों जीवन-मृत्यु के चक्र का वर्णन कर रहा हो। एक ओर जहाँ कुछ लोग देह शुद्धि हेतु माँ गंगा में डुबकी लगाते दिखाई देते हैं तो दूसरी ओर पञ्च तत्व में विलीन देह, अस्थियों के रूप में इसी पवित्र नदी में विलीन होती नज़र आती है। दिनभर की धार्मिक गतिविधियों से थकाहारा यह शहर, दशाश्वमेध घाट पर होने वाली शाम की गंगा आरती में चैन की सांस लेता प्रतीत होता है और साथ ही माँ गंगा का आशीर्वाद लेकर फिर से तैयार होता है अगले दिन की भागदौड़ के लिए।

मौसम के अनुसार घटता-बढ़ता माँ गंगा का पानी इन घाटों का अलग-अलग रूप दिखाता है तथा लगभग हर घाट पर स्थापित छोटे-बड़े शिवलिंग इन्हें और पवित्र कर देते हैं। वाराणसी में करीब 84 घाट हैं- मनमंदिर घाट से ललिता घाट, हरिश्चंद्र घाट, शिंदे घाट, केदार घाट, चौकी घाट से चौसठी घाट, पंचगंगा घाट से आदि केशव घाट लेकिन इन सभी घाटों में अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट और मणिकर्णिका घाट का विशेष महत्त्व है-   अस्सी घाट - Assi Ghat

यह घाट अस्सी नदी और गंगा नदी के संगम पर स्थित है। पौराणिक कथानुसार देवी दुर्गा ने शुंभ-निशुंभ दैत्यों का वध करने के बाद अपना खड़ग (Sword) फैंक दिया था और जिस स्थान पर वह गिरा, वहाँ से एक धारा बहने लगी जिसे आज अस्सी नदी के नाम से जानते हैं। 

दशाश्वमेध घाट - Dasashwamedha Ghat

दशाश्वमेध घाट वाराणसी के सबसे व्यस्ततम एव प्राचीन घाटो में से एक है। पंचतीर्थी यात्रा के पांच तीर्थों में से एक दशाश्वमेध घाट से सबंधित दो मान्यताएं हैं- पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि ब्रह्मा जी (Lord Brahma) ने यहाँ दस अश्वमेध यज्ञ किए थे जबकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार दूसरी शताब्दी के हिन्दू राजवंश ने यह यज्ञ करवाए थे जिसके फलस्वरूप इस घाट का नाम रखा गया। इसी घाट के समीप सुल्तानकेस्वरा (Sulatankesvara), ब्रह्मेषवरा (Brahmesvara), वरहेश्वरा (Varahesvara), अभय विनायक (Abhaya Vinayaka), देवी गंगा, शीतला देवी और बांदी देवी (Bandi Devi ) आदि मंदिर हैं।

मणिकर्णिका घाट - Manikarnika Ghat

मणिकर्णिका घाट या महाश्मशान, वाराणसी का यह घाट अन्त्येष्टि कर्म (Funeral) के लिए बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ किये गये अंतिम संस्कार से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सार्वजनिक रूप से अचंभित करती अंतिम संस्कार की प्रक्रिया देख तो सकते हैं लेकिन यहाँ की तस्वीर खींचना किसी जुर्म से कम नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव द्वारा इस स्थान पर तांडव नृत्य करते हुए उनके कान का कुंडल गिर गया था जिस वजह से यह घाट मणिकर्णिका नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वाराणसी के घाटों का इतिहास - History of Varanasi Ghat in Hindi

वाराणसी के भव्य घाटों का निर्माण 18वीं-19वीं सदी में हुआ था। इनमें से ज्यादातर घाट मराठा साम्राज्य के शासन काल में बनवाए गए थे। बाजीराव पेशवा प्रथम, इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर, तपस्वी आनंदमयी माँ, महंत हरिहरनाथ और तत्कालीन बंगाल के राजा, काशी के राजा, नेपाल के राजा, बड़ौदा (Baroda ) के राजा, ग्वालियर के राजा आदि ने कई घाट पक्के करवाए थे।

वाराणसी घाट मे क्या देखे -

हनुमान घाट जिसका नाम पहले रामेश्वरम घाट था, माना जाता है कि इसका निर्माण स्वयं भगवान राम ने किया था। कवि तुलसीदास के द्वारा यहाँ हनुमान मंदिर बनाए जाने के बाद घाट का नाम हनुमान घाट रखा गया।

वाराणसी घाट सलाह -

  • नौका सवारी कर शहर का सुंदर नज़ारा देख सकते हैं

  • घाट पर स्नान करते समय अपने कीमती सामान का ध्यान रखें

  • दशाश्वमेध घाट पर संध्या के समय होने वाली गंगा आरती में जरुर शामिल हों

  • नदी व आसपास की साफ़-सफाई का ध्यान रखें

  • किसी के बहकावे में ना आएं और दान केवल दान पात्र में ही डालें

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