शिरडी साईं बाबा मंदिर (Shirdi Sai Baba Temple), साईं बाबा की समाधि पर बना एक अत्यंत सुंदर व विशाल मंदिर है। यह मंदिर 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला है, जिसके परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल स्थित हैं। माना जाता है कि साईं बाबा वर्ष 1858 में शिरडी आए थे और करीब 60 वर्षों तक यहीं रहे। श्रद्धा (Faith) और सबूरी (Compassion) का पाठ पढ़ाने वाले साईं बाबा का सभी धर्मों में विश्वास था, इसीलिए आज भी उनके इस भव्य मंदिर में हिन्दू-मुस्लिम एक साथ बाबा के दिव्य दर्शन करते हैं।
मंदिर के मुख्य भवन (समाधिस्थल) में बाबा की सफ़ेद संगमरमर की कब्र और सजीव प्रतीत होती आकर्षक प्रतिमा स्थापित है, जो इटालियन मार्बल से बनी है। सदैव एक रंगीन चादर से ढकी बाबा की कब्र के चारों ओर रेलिंग लगी है।
साईं बाबा के इस भव्य मंदिर में रोजाना करीब 25 हज़ार श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने आते हैं और त्यौहार के समय में ये संख्या लगभग 1 लाख तक पहुँच जाती है।
मंदिर के परिसर में द्वारकामाई, समाधिस्थल, गुरुस्थान, चावडी, नीम वृक्ष, खंडोबा मंदिर, लेंडी बाग़ और संग्रहालय के अलावा कई छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं। ये सभी स्थान बाबा के जीवन से किसी न किसी तरह जुड़े हैं-
द्वारकामाई - Dwarkamai
कहा जाता है कि शिरडी आने के बाद बाबा ने द्वारकामाई नामक मस्जिद में निवास किया था और यहीं अपनी अंतिम सांस ली थी।
समाधिस्थल - Samadhisthal
समाधिस्थल या मंदिर का मुख्य कक्ष जहाँ समाधि के बाद बाबा के पार्थिव शरीर को दफनाया गया था।
गुरुस्थान - Gurusthan
गुरुस्थान अर्थात गुरु का स्थान (Place of the Guru), मंदिर में नीम पेड़ के नीचे के इस हिस्से में साईं बाबा ने अधिकतर समय बिताया था और साईं बाबा इस जगह को अपने गुरु का स्थान भी कहा करते थे।
चावडी - Chawadi
ऐसा माना जाता है कि बाबा कभी सोते नहीं थे और अपने अनुयायियों को कहा करते थे कि वे अपने सोते हुए भक्तों की रक्षा करने लिए जागते हैं लेकिन अपने जीवन के अंतिम अस्वस्थ दिनों में बाबा कभी-कभी यहाँ सोया करते थे।
खंडोबा मंदिर - Khandoba Temple
यह मंदिर शिरडी की दो महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित है, पहला यह कि साईं बाबा शिरडी में सबसे पहले इसी स्थान पर आये थे और दूसरा यहाँ बाबा को उनका नाम "साईं" मिला था। साईं बाबा एक विवाह समोराह में आमंत्रित थे जो इस मंदिर में हो रहा था, उन्हें देखकर मंदिर के पुजारी "म्हालसापति (Mhalsapati)" ने उन्हें "आओ साईं" कहकर संबोधित किया जिसके बाद से दुनियाभर में बाबा को इसी नाम से पूजा जाने लगा।
लेंडी बाग़ - Lendi Garden
बाबा के समय में यह एक अनुपयोगी भूमि थी जिसके दोनों ओर दो धाराएं लेंडी और सिरा (जो अब सूख चुकी है) बहा करती थी। इस स्थान पर बाबा प्रत्येक दिन एकांत में कुछ समय बिताने के लिए आया करते थे। यहाँ मौजूद दो पेड़ (नीम और बोधि) बाबा द्वारा ही लगाये गए थे और दोनों पेड़ों के मध्य बाबा ने एक दीपक जलाया था जो तब से आज तक निरंतर जल रहा है।
साईं बाबा संग्रहालय - Sai Baba Museum
द्वारकामाई के एक हिस्से में ही यह संग्रहालय स्थित है जहाँ साईं बाबा की कई निजी और प्रयोग में लाई गई वस्तुओं को संरक्षित कर रखा गया है जैसे बाबा की चरणपादुकाएं, कुछ सिक्के, बर्तन, चक्की, कुर्सी, मिट्टी के बर्तन जिसमें बाबा भिक्षा माँगा करते थे आदि।
इन स्थलों के अलावा मंदिर परिसर में मारुति मंदिर, भगवान गणेश, शिव और शनि देव, माँ लक्ष्मी, नरसिंह और एक जैन मंदिर भी है।
पहले इस मंदिर के स्थान पर, एक वाडा (मंदिर व आरामगृह) बनाया गया था जिसका निर्माण बाबा के एक अमीर भक्त, नागपुर के गोपालराव बूटी ने किया था। इस वाडे को बनाने की प्रेरणा बूटी को एक स्वप्न से मिली थी जिसमें स्वयं बाबा ने आकर उन्हें वाडा निर्मित करने के निर्देश दिए थे।
वाडा का निर्माण कार्य वर्ष 1915 में शुरू हुआ था, जिसकी देख-रेख और प्रबंध का जिम्मा स्वयं बूटी और बाबा के अन्य भक्तों ने उठाया था। जब कभी साईं, वाडा के आसपास से गुजरते थे तब वे खुद कुछ सुझाव दे दिया करते थे। इसी बीच बाबा अस्वस्थ रहने लगे। वर्ष 1918 में विजयादशमी के दिन जब बाबा ने अपनी अंतिम सांस ली तब उन्हें वाडा में दफनाया गया। वर्ष 1954 में साईं बाबा की सफ़ेद संगमरमर की मूर्ति स्थापना से पहले, बाबा की कब्र पर उनकी एक तस्वीर रखी गई थी जो आज भी मंदिर में देखी जा सकती है।
इसके बाद से दिन-प्रतिदिन बाबा के भक्तों की भारी संख्या को देखते हुए शिरडी साईं संसथान द्वारा वर्ष 1998-99 में मंदिर में कई बदलाव करवाए गए, साल 1998 में एक बड़े हॉल का निर्माण करवाया गया जहाँ साईं भक्त बाबा के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। इसके अलावा श्रद्धालुओं के लिए प्रसादालय, बुक स्टाल, दान कक्ष, कैंटीन, रेलवे रिजर्वेशन आदि सुविधाएं प्रदान की गई। वर्तमान में मंदिर का वास्तविक रूप, पूर्व में निर्मित वाडे के आकार का दुगुना है।
साईं मंदिर में आकर पर्यटक बाबा के कई चमत्कारों के साक्षी बन सकते हैं जिनमें से एक है द्वारकामाई में निरंतर जलती धुनी (Fire) और उससे बनती राख जिसे उदी (Udi) कहते हैं, यह हर रोग और दर्द हरने वाली मानी जाती है।
अपने सामान का ध्यान रखें
जूते-चप्पल उतारकर मंदिर में प्रवेश करें
समाधि मंदिर में मोबाइल फोन बंद करके रखें
किसी भी तरह का दान, श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट के डोनेशन काउंटर पर ही दें
विशेष पूजा-अर्चना या हवन करवाने के लिए साईं संस्थान के कार्यालय से संपर्क करें
मंदिर में चढ़ावे का जरूरी सामान जैसे माला, फूल, प्रसाद, नारियल आदि मंदिर परिसर में भी मिलता है
मंदिर की प्रसिद्धि और विस्तार को देखते हुए बाबा के दर्शन और पूरा मंदिर देखने के लिए करीब 2 से 3 घंटे का समय लेकर चलें (त्यौहारों में समय बढ़ भी सकता है)
साईं बाबा की इस्तेमाल की गई प्रत्येक वस्तु मंदिर में स्थित संग्रहालय या साईं संस्थान द्वारा संरक्षित कर रखी गई है, किसी भी दुकान या व्यक्ति के बहकावे में आकर ऐसी वस्तुएं न खरीदें