महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित 'शनिवार वाड़ा (Shaniwar Wada)' महल एक ऐतिहासिक स्मारक है। इस महल का आकार इतना बड़ा है कि मराठों के शासन काल में इसमें एक साथ लगभग 1000 लोग रहते थे। महल की दीवारों पर रामायण व महाभारत के चित्र बने हैं। इसके अलावा महल में कमल के फूलों के आकार में बने फव्वारे भी हैं। इस महल में रोजाना लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। शनिवार वाड़ा महल में पांच दरवाजे हैं, जिन्हें दिल्ली दरवाज़ा, मस्तानी दरवाज़ा, खिड़की दरवाज़ा, नारायण दरवाज़ा और गणेश दरवाज़ा नाम दिया गया है। इस महल का सबसे खास हिस्सा थरोलिया दीवानखाना, डांसिंग हाल और जूना अरसा महल हैं।
'शनिवार वाड़ा' का संचालन पुणे नगरपालिका द्वारा किया जा रहा है। इसमें 18वीं सदी की मूर्तियां व अन्य सामान भी मौजूद है, जो महल की पहली मंजिल पर रखा गया है।
महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित ऐतिहासिक स्मारक 'शनिवार वाड़ा' महल का निर्माण मुला-मुठा नदी के किनारे बाजीराव प्रथम ने कराया था। इस महल की नींव 10 जनवरी 1730 में शनिवार के दिन रखी गई थी। यह महल लगभग दो साल बाद सन 1732 में तैयार हुआ था, उस समय इसके निर्माण में 16,110 रुपए लगे थे। 1828 में अज्ञात कारणों से लगी आग में महल रूपी किले का एक भाग नष्ट हो चुका है।
शनिवार वाड़ा महल के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा हुआ है। 30 अगस्त 1773 की काली रात में 18 साल के तत्कालीन शासक नारायण राव की हत्या कर दी गई थी। मरने से पहले ही खतरा भांप लेने पर वह अपने चाचा के कमरे की ओर "काका माला वचाव" (चाचा मुझे बचाओ) कहते हुए भागे पर खुद को बचा न सके। कहा जाता है कि महल में नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके आखिरी शब्द "काका माला वचाव" महल में सुनाई देते है।