हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर का मुख्य त्यौहार 'कुल्लू दशहरा' (Kullu Dussehra) विश्व प्रसिद्ध है। इस उत्सव की विशेषता यह है कि यहाँ रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता बल्कि भगवान रघुनाथ जी के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की सुसज्जित रथों पर शोभा-यात्रा निकाली जाती है। सितंबर या अक्टूबर में विजयदशमी से शुरू यह उत्सव सात दिनों तक मनाया जाता है।
दशहरा रथ यात्रा धालपुर से शुरू होती है और छह दिनों तक देवी-देवताओं की पूजा के बाद सातवें दिन रथों को व्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है और रावण दहन की जगह कुछ कंटीले पेड़-पौधों को लंकादहन के रूप में जलाया जाता है। रघुनाथ जी (Raghunath Ji) की मूर्ति सुल्तानपुर स्थित मंदिर में पुनः स्थापित करने के साथ पर्व संपन्न होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा जगत सिंह के शासनकाल में उन्हें ज्ञात हुआ कि दुर्गादत्त नामक किसान के पास बहुत सारे हीरे-मोती हैं उस खजाने को हड़पने की इच्छा करते हुए राजा ने किसान को आदेश दिया कि वह सारी सम्पति उसे समर्पित कर दे अन्यथा मृत्युदंड स्वीकार करे जबकि किसान के पास ज्ञान के खजाने के अलावा कुछ भी नहीं था। राजा से बचने के लिए किसान ने आत्मदाह कर लिया और मरने से पहले राजा को श्राप दे दिया। उसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए राजा ने ज्ञानी-महात्माओं की सलाह पर अयोध्या से लाई गई भगवान रघुनाथ की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया और उन्हें इस घाटी का मुख्य देवता घोषित किया।
पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, व्यंजन और अपार श्रद्धा इस उत्सव के मुख्य अंश हैं, जो यहाँ के लोगों के साथ-साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों को भी सकारात्मकता से भर देते हैं। पर्यटक कुल्लू के निकट भुंतर एयरपोर्ट या जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन से यहाँ पहुँचकर इस विशाल उत्सव के साक्षी बन सकते हैं।