8वीं सदी में जन्मे "आदि गुरु शंकराचार्य" (Guru Adi Shankaracharya) एक महान विद्वान और संत थे जिन्होंने भारत के विभिन्न कोनों में यात्रा कर चार पवित्र मठों को स्थापित किया था- उत्तराखंड में जोशीमठ, पुरी में गोवर्धन मठ, कर्नाटक में शृंगेरी मठ और गुजरात में शारदा मठ।
अद्वैत वेदांत का प्रचार-प्रसार करने के लिए शंकराचार्य ने निरन्तर भारत यात्रा की थी ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस विचारधारा को पहुंचा सकें। केदारनाथ में स्थित आदि शंकराचार्य मंदिर में शंकराचार्य की मूर्ति व भगवान शिव का एक शिवलिंग मौजूद है। आदि शंकराचार्य समाधि मंदिर में स्थित भगवान शिव का स्पातिक लिंगम सभी दुखों को हरने वाला बताया जाता है इसीलिए केदारनाथ आया हर भक्त इस लिंगम के दर्शन जरूर करता है।
आदि शंकराचार्य ने ही केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया था। जिस समय भारत में विभिन्न देशों से आई संस्कृतियां पनपने लगी थीं, उस समय में हिन्दू सनातन धर्म की रक्षा करने का श्रेय भी आदि गुरु शंकराचार्य को जाता है। शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित है व केदारनाथ के मुख्य पर्यटक और धार्मिक स्थलों में से एक है। कुछ समय पहले केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के कारण शंकराचार्य की समाधि बर्बाद हो गई थी, बाद में इसे पुनःनिर्मित कराया गया।
शंकराचार्य ने शिव की भक्ति में लीन होने के लिए केदार धाम को चुना। श्री आदि शंकराचार्य की समाधि को कुछ सालों पहले ही एक बड़े मंदिर के रूप में बनवाया गया था। पवित्र धामों की स्थापना के बाद शंकराचार्य 32 वर्ष की कम आयु में ही समाधि में लीन हो गए थे।
शंकर दिग्विजयम के अनुसार, स्वामी शंकराचार्य को अपने निवास स्थान कैलाश ले जाने के लिए स्वयं भगवान शिव केदार घाटी आए थे।
अप्रैल से नवंबर माह यहां जाने का उत्तम समय है।
अपने साथ अपनी जरूरी दवाईयां साथ रखें।
तीर्थयात्रियों के लिए यहां पहुंचने के लिए पोनी घोड़े की भी सुविधा उपलब्ध है।
मांस-मच्छी व शराब का सेवन न करें।