हिमालय पर्वत और तवी नदी के किनारे बसा बाहू किला (Bahu Fort), जम्मू का सबसे पुराना किला है। 19वीं सदी में डोगरा राजवंश ने बाहू किले में अपने रहने के लिए मरम्मत करवाई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ इस किले का धार्मिक महत्व भी है। बाहू किले में माता काली का एक मंदिर स्थित है जिसे यहां के स्थानीय लोग "बावे वाली माता"(Bawe Wali Mata) मंदिर के नाम से पुकारते हैं।
ईंट, चूने और बलुआ पत्थर से बने इस किले में एक तालाब, किलेदारों के रहने के लिए कक्ष, घोड़ों के अस्तबल और एक बाग भी स्थित है। किले के अन्दर और चारों ओर फैले इस बाग को "बाग़-ए-बाहू" (Bagh-e-Bahu) के नाम से जाना जाता है और यह जम्मू के मुख्य पर्यटन स्थलों में से भी एक है।
इस किले का मुख्य आकर्षण है यहाँ का भूमिगत मत्स्यशाला (Underground Aquarium) है जो बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी काफी लोकप्रिय है। यहाँ पर्यटकों को मौका मिलता है जलीय दुनिया को बेहद ही रोचक तरीके से जानने का। शाला में प्रवेश करने के लिए सैलानियों को एक बड़ी से मछली के मुंह से होकर गुजरना पड़ता है, जोकि इसका एक बड़ा ही अनोखा और दिलचस्प प्रवेश द्वार है।
जम्मू का सबसे पुराना बाहू किला 3000 साल पहले राजा बाहूलोचन ने तवी नदी के बाएं किनारे पर बनवाया था। फिर 19वीं सदी में डोगरा राजाओं द्वारा इस किले में मरम्मत कार्य करवाया गया और इसकी दीवारों को बढ़वाया गया।
मंगलवार और रविवार को भक्त माता काली के मंदिर में आकर बाग-ए-बाहू से फूल तोड़कर माता के चरणों में चढ़ाते हैं। इसे शुभ माना जाता है और कहते हैं कि ऐसा करने से माता अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं।
किले में प्रवेश के लिए शुल्क लगता है
बंदरों से सावधान रहें
पीने का पानी साथ लेकर जाएँ
यह किला हफ्ते के सभी दिन सुबह के छह बजे से रात के आठ बजे तक खुला रहता है
काली माँ का मंदिर, बाग़ और मत्स्यशाला विशेष आकर्षण हैं, जरूर देखें