सदियों से हिमालय पर्वत, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है और प्रकृति की भरपूर सुंदरता की खोज करने के लिए उन्हें प्रेरित करता आया है। पर्वतारोहण और साहसिक गतिविधियों में प्रशिक्षण देने के लिए "हिमालय पर्वतारोहण संस्थान" (Himalayan Mountaineering Institute) का गठन किया गया। इसके साथ ही पर्वतारोहण में करियर बनाने की चाह रखने वालों को यहाँ विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। कामेत (गढ़वाल क्षेत्र में दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत), सकंग, रथोंग, माउंट एवरेस्ट (दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत), काब्रू नॉर्थ, माउंट गंगोत्री, माउंट मकालू (दुनिया की पांचवीं सबसे ऊंची पर्वत शिखर) जैसी चोटियों पर यह संस्थान सफल अभियान करा चुका है।
हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट के परिसर में पर्वतारोहण छात्रों के लिए आवासीय विद्यालय, प्रशिक्षकों के लिए स्विस शैली में बने घर, एक संग्रहालय जहां पर्वतारोहण कलाकृतियां और कई अभियानों के प्रदर्शन लगे हुए हैं और एक रेस्टोरेंट भी मौजूद है। संस्थान के परिसर में एक बड़ी दूरबीन भी लगी हुई है जिससे कंचनजंघा की चोटी के सुंदर दृश्य को देख सकते हैं।
1953 में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने में विजयी होने के बाद "एडमंड हिलेरी" को इंग्लैंड की महारानी द्वारा "नाइट" की उपाधि दी गई थी। इस चढ़ाई में एडमंड हिलेरी के एकमात्र भारतीय साथी "शेरपा तेनजिंग नोर्गे" की सफलता को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने दार्जिलिंग में हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का गठन किया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 4 नवंबर 1954 को इस संस्थान की स्थापना की गई ताकि देश के युवाओं को पर्वतारोहण जैसे रचनात्मक क्षेत्र में करियर बनाने में सहायता मिल सके। इस संस्थान के पहले फील्ड ट्रेनिंग के निदेशक का पद नोर्गे को दिया गया।
यह संस्थान ना केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं और नेत्रहीनों को भी पहाड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण देता है।