भुवनेश्वर (Bhubaneshwar) भारत के ओडिसा राज्य की राजधानी है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण इस शहर का नाम यहाँ स्थित त्रिभुवनेश्वर मंदिर (Tribhuvaneswar Temple) पर ही रखा गया है। यहाँ 500 से भी ज्यादा मंदिर मौजूद हैं इसलिए इसे "मंदिरों का शहर" भी कहा जाता है। यह वही स्थान है जहाँ तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में प्रसिद्ध कलिंग की लड़ाई लड़ी गई थी जिसके बाद यहीं सम्राट अशोक एक लड़ाकू योद्धा से बौद्ध अनुयायी बन गए। पूर्व का काशी कहा जाने वाला यह शहर करीब 135 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। शहर में पर्यटक प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ, मंदिरों, रहस्यमयी गुफाओं, प्राणी उद्यान (Zoological Park), संग्रहालय, धौलगिरी शांति स्तूप (Dhauligiri Shanti Stupa) आदि दर्शनीय स्थानों का आनंद ले सकते हैं।
भुवनेश्वर शॉपिंग के दीवानों के लिए एक बहुत आकर्षक स्थान है। पर्यटक यहाँ से पत्ता पेंटिंग्स (Patta paintings), पत्थर और सींग से बने खूबसूरत सामान, रेशम और कपास से बने कपड़े, पैचवर्क (Patchwork), बांस से बनी टोकरियाँ आदि चीजें खरीद सकते हैं।
भुवनेश्वर शहर का इतिहास लगभग 2000 वर्ष से भी अधिक पुराना है। यह क्षेत्र सबसे पहले कलिंग की प्राचीन राजधानी के तौर पर उभरा था। 1936 में, ओडिशा (उड़ीसा) एक अलग प्रांत बन गया, जिसकी राजधानी "कटक" (Cuttack) थी। इसके बाद 1956 में भुवनेश्वर को ओडिशा की राजधानी बना दिया गया।
भुवनेश्वर के महत्वपूर्ण संगीत समारोहों में से एक है। यह उत्सव हर्षोउल्लास के साथ हर वर्ष जनवरी माह में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय और पारंपरिक संगीत को बढ़ावा देना है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए देश भर से संगीतकार और नृतक आते हैं।
बीजू पटनायक हवाई अड्डा (Biju Patnaik Airport) यहाँ का नजदीकी हवाई अड्डा है। हवाई अड्डा भुवनेश्वर शहर से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ से आगे जाने के लिए पर्यटक टैक्सी या बस सेवा का प्रयोग कर सकते हैं।
भुवनेश्वर शहर का अपना रेलवे स्टेशन है जो शहर के केंद्र में स्थित हैं। भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलौर, मुबंई जैसे भारत के कई मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
भुवनेश्वर राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा अच्छी तरह से देश के विभिन्न राज्यों द्वारा जुड़ा हुआ है। भुवनेश्वर का नया बस अड्डा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पांच पर है।
भूवनेशवर की यात्रा सालभर में कभी भी की जा सकती है लेकिन यहाँ की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च का है। इसी बीच ही यहाँ पर्यटक शिवरात्रि पर्व, खण्डगिरि मेला (Khandagiri Mela) आदि का लुत्फ उठा सकते हैं।