दरगाह शरीफ से कुछ ही दूरी पर अढाई दिन का झोपड़ा (Adhai din ka Jhopra) मस्जिद स्थित है। हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला में निर्मित यह इमारत एक दीवार से घिरी हुई है जिसकी 7 महराबों पर कुरान की आयतें लिखी गई हैं।
उत्तर में एक दरवाज़ा मस्जिद का प्रवेश द्वार है। सामने का भाग पीले बलुआ पत्थर से बनी कई मेहराबों द्वारा सजाया गया है। इस प्रकार की विशेषताएं अधिकतर प्राचीन अरबी मस्जिदों में पाई जाती है।
भवन के आंतरिक भाग में एक मुख्य कमरा है जो चार खम्भों पर खड़ा है। मस्जिद को अधिक ऊँचाई देने के लिए खंभों को एक के उपर एक रखा गया है। हालाँकि यह एक जर्जर इमारत है जिसे पुनः निर्माण की आवश्यकता है लेकिन इसके बाद भी अजमेर आने वाले पर्यटक ढाई दिनों में निर्मित इस अद्भुत इमारत को देखने आते हैं।
असल में यह एक संस्कृत विद्यालय था जिसे मुहम्मद गोरी ने 1198 ई. में एक मस्जिद में बदल दिया था। बाद में 1230 ई. में सुलतान अल्त्मुश द्वारा एक उठी हुई मेहराब के नीचे जाली जोड़ दी गई थी।
ऐसा माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण दो जिनों द्वारा ढाई दिन में पूरा किया गया था इसलिए इसका नाम अढाई दिन का झोपड़ा रखा गया।
प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है
प्रवेश से पहले जूते-चप्पल बाहर उतारें
चमड़े की वस्तुएं साथ न ले जाएँ